हरे कृष्णा - हरे कृष्णा, कृष्णा-कृष्णा हरे हरे!
हरे रामा - हरे रामा, रामा-रामा हरे हरे!
“ ...आपको यह अनुभव होता है कि आपके भीतर कुछ अति-विशिष्ट छुपी हुई बात सदा रही है, और आपको इसका आभास तक नहीं था। ”
आज का विचार
अपने आन्तरिक परिवेश का निर्माण कीजिये। मौन का अभ्यास कीजिये। मुझे महान् गुरुओं का अद्भुत अनुशासन याद आता है। जब हम व्यर्थ बातों में लगे रहते, तो वे कहते : “अपने आन्तरिक गढ़ में वापस जाओ।” तब वह समझना बड़ा कठिन मालूम पड़ता था, परन्तु अब शान्ति के उस मार्ग को समझता हूँ जो हमें दिखाया गया था।





